
धड़क 2 देखने से पहले जान लें – ये ‘रोमांटिक’ फिल्म नहीं, समाज के घावों पर नमक छिड़कने वाली ड्रामा है
“तेरी मोहब्बत भी क्या अजीब किस्सा है,
जात पूछती है, इश्क़ नहीं देखती…”
ये लाइन बस एक डायलॉग या शायरी नहीं है। ये उस समाज की सच्चाई है, जहाँ प्यार से पहले सरनेम देखा जाता है। और यही बात ‘धड़क 2’ अपने पूरे वजूद से कहने की कोशिश करती है।
करण जौहर, जो आमतौर पर फैशनेबल और फैंसी लव स्टोरीज़ के लिए जाने जाते हैं, इस बार एक ऐसे मुद्दे को पर्दे पर लाए हैं, जिसे ज़्यादातर मेनस्ट्रीम फिल्ममेकर्स छूने से भी कतराते हैं… जातिगत भेदभाव। ये फिल्म 2018 की तमिल क्लासिक ‘परियेरम पेरुमल’ का हिंदी रीमेक है, जो पहले ही अपनी बोल्डनेस और सच्चाई के लिए तारीफें बटोर चुकी है।
दरअसल, नीलेश अहिरवार नाम का एक लड़का है, जो एक दलित परिवार से आता है। उसने ज़िंदगी भर भेदभाव झेला है… स्कूल में, मोहल्ले में, और हर उस जगह पर जहाँ उसके सपनों का वजूद टकराया हो किसी के ‘कास्ट प्रिविलेज’ से। उसकी ज़िंदगी का सपना है वकील बनना डॉ. आम्बेडकर की तरह… ताकि वो न सिर्फ़ खुद को, बल्कि अपनी पूरी कम्युनिटी को आवाज़ दे सके।
उसी दौरान, उसकी ज़िंदगी में आती है विधि, एक लड़की जो पढ़ी-लिखी है, स्मार्ट है, लेकिन एक अलग सामाजिक पायदान से आती है। दोनों एक-दूसरे की तरफ़ खिंचते हैं, मगर समाज उन्हें बार-बार याद दिलाता है कि उनके बीच सिर्फ़ मोहब्बत नहीं, एक बहुत बड़ी ‘दीवार’ भी है जात की।
वैसे तो ‘धड़क 2’ कोई नई कहानी नहीं सुनाती। ये कहानी पहले भी कही जा चुकी है ‘सैराट’ में, ‘परियेरम पेरुमल’ में, और बहुत-सी जगहों पर। लेकिन फर्क ये है कि हर बार जब ये कहानी कही जाती है, तो वो किसी नए इंसान के ज़ख्म को आवाज़ देती है।