बिहार के एक छोटे से गाँव के बेहद गरीब घर में 15 मार्च 1986 के दिन एक बच्चे का जन्म हुआ। माँ बाप ने नाम दिया शत्रुघ्न यादव। जिस उम्र में बच्चे गलियों में कंचे खेलते हैं उसी उम्र में शत्रुघन हरिकीर्तन गाने लगा। भगवान से बच्चे का ये लगाव और उसकी कला को देखकर लोगों ने उसे एक और नाम दे दिया ‘ खेसरिया ‘. लेकिन शत्रुघ्न यादव का सिर्फ नाम बदला था हालत नहीं। गरीबी अब भी बदकिस्मती की तरह उसके पीछे लगी हुई थी. लेकिन अपनी दुनिया में मस्त रहने वाला ये खेसारी दिन में भैंस चराता और शाम होते ही मंदिर में भगवान की सेवा में लग जाता।जवानी की दहलीज पर खड़े खेसारी लाल के सामने अब बेरोजगारी बड़ी समस्या थी। गाने वजाने को रोजी रोटी का ज़रिया बनाया जाय या कोई दूसरा काम ? ये सवाल खेसारी के मन में कई बार उठा। थोड़े बहुत पैसे जोड़कर एक दो ऑडियो कैसेट्स भी निकलवाए लेकिन कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिली। इसी बीच bsf में नौकरी मिल गई तो शत्रुघ्न उर्फ़ खेसारी लाल यादव को लगा की ज़िंदगी की गाडी अब पटरी पर आ गई है। लेकिन संगीत की देवी के उपासक को उससे दूर कोई रख नहीं सकता है। फिर हुआ ये की खेसारी ने नौकरी छोड़ दी और वापस गाँव लौट आये। पिताजी को गुस्सा आया और लड़के की शादी करदी। अब हुआ ये की खेसारी लाल अपना और पत्नी का पेट पालने के लिए दिल्ली में लिट्टी चोखा बेचने लगे। लेकिन संगीत की मिठास अब भी उनकी आवाज़ में बरक़रार थी।फिर आया साल 2008 जब खेसारी लाल का एक गाना सइंया अरब गईले न सुपर डुपर हिट हो गया। बस यहीं से सब कुछ बदल गया। खेसारी के स्टेज शो पर इतनी भीड़ जुटने लगी की उस ज़माने के बड़े स्टार भी हैरान हो जाते थे। गानों के बाद २०१२ में खेसारी लाल ने एक फिल्म में अभिनय किया जिसका नाम था ‘ साजन चले ससुराल’ इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस को हिलाकर रख दिया और फिल्मी दुनिया को एक नया सितारा भी मिला। इस बात को आज सात साल बीत चुके हैं लेकिन खेसारी का संघर्ष अब भी ज़ारी है किसी और से नहीं बल्कि खुद से। आज भी खेसारी पुराने दिनों को याद कर भावुक हो जाते हैं और कई बार कहते हैं ‘ दर्शक ही मेरे भगवान हैं और मैं उनका ही भक्त हूँ।