जोरू का गुलाम में प्रवीण सप्पू के अदायगी से मंत्रमुग्ध हुये दर्शक
पटना 15 फरवरी रंगमंच और फिल्मों के मशहूर अभिनेता प्रवीण सप्पू ने जोरू का गुलाम नाटक में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तनेश्वर आजाद जन सम्मान समिति ,लोक पंच संस्था द्वारा प्रस्तुत नाटक जोरू का गुलाम का मंचन आज राजधानी पटना के प्रेमचंद रंगशाला में किया गया। ‘जोरू का गुलाम’ तीन किरदारों के बीच पति,पत्नी और साला के बीच
घूमती है। घरेलू परेशानियों को हास्य के माध्यम से दिखाया गया है। नाटक
के द्वारा पलायन पर कटाक्ष किया गया है।इस नाटक में प्रवीण सप्पू ने
हास्य रस को जिस तरह से अपने अंदर आत्मसात किया है वो मंच पर देखते बनता है। दर्शकों से खचाखच भरे प्रेमचंद रंगशाला दर्शकों के ठहाके और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। नाटक मे जीजा की भूमिका में उन्होंने जान डाल दी। पत्नी की भूमिका में बबली कुमारी ने अद्भुत अभिनय किया। दीपक आनन्द
ने साला के पात्र को जीवंत कर दिया।
अभिषेक चौहान रचित और रवि भूषण बबलू के प्रकाश परिकल्पना एवं निर्देशन से सजी जोरू का गुलाम नाटक रोजगार, तालीम और बेहतरीन कल की खातिर गांव से पलायन कर शहर में आ बसने वाली लोगों पर आधारित हैलेकिन शहर की संस्कृति और मिज़ाज, गांव की संस्कृति और मिज़ाज से बिल्कुल अलहदा होती
है। यहां तक कि शहर की आबो हवा इंसान की फितरत तक बदल डालती है। खासकर अजीबो गरीब हालात तो तब पैदा होते हैं, जब ऐसे लोग ना पूरी तरह गांव के रह पाते हैं और ना ही शहर के। मिलिए ऐसे ही एक परिवार से, जिसमें ती जने रहते हैं। मियां, बीवी और साला। मियां परेशान है अपनी दबंग बीवी और आफत
का परकाला, अपने साले से, जो हमेशा आग में घी का काम करता है। दोनों ने मिलकर बेचारे का चैन-सुकून छीन रखा है। घर का सारा काम-काज उसी को करना पड़ता है। लेकिन बेचारे का बीवी की धौंस के आगे एक नहीं चलती। आखिरकार एक
दिन सपने में ही सही उसे एक ऐसी चमत्कारी किताब मिलती है, जिसमें उसे न सिर्फ ऐसी पत्नी के जुल्मों से छुटकारा पाने की तरकीब मिलती है बल्कि ऐसी पत्नियों को वश में रखने का मंत्र भी मिल जाता है। हालात अब बिल्कुल उल्टे पड़ जाते हैं। पति को रौबदार अवतार में पाकर उसकी पत्नी और भाई हैरत में पड़ जाते हैं। लेकिन सपने तो आखिर सपने ही होते हैं, चाहे कितना भी सुंदर क्यों ना हो, उसके टूटते ही उसकी सारी खुशी काफूर हो जाती है।