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भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। (डा. नम्रता आनंद)
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भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है।
(डा. नम्रता आनंद)
निर्माण और सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को धूमधाम से मनाई जाती है।विश्वकर्मा पूजा/जयंती ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार और शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा के सम्मान में मनाया जाता है।विश्वकर्मा पूजा का आयोजन मुख्य रूप से तकनीकी या अभियंत्रण क्षेत्र से जुड़े लोगों द्वारा औद्योगिक प्रतिष्ठानों या औद्योगिक इकाइयों में धूमधाम एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा के साथ मशीनों और औजारों की पूजा की जाती है। सनातन धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है।भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला अभियंता भी कहा जाता है। कहा जाता है कि उन्‍होंने देवी-देवताओं के लिए न सिर्फ भवनों कानिर्माण किया बल्कि समय-समय पर अस्‍त्र-शस्‍त्रों का भी सृजन किया था। यही वजह है कि धार्मिक मान्यताओ के अनुसार, सभी औजारों या उपकरण परविश्वकर्मा का प्रभाव माना जाता है।विश्वकर्मा पूजा के उत्सव में कई रीति-रिवाज और अनुष्ठान शामिल हैं। श्रमिक अपने औजारों, मशीनरी, वाहनों और कार्यस्थलों को साफ करते हैं। भक्त रंगीन सजावट, रंगोली डिज़ाइन और फूलों की सजावट से कार्यशालाओं और कारखानों को सजाते हैं। भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन स्थानों पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती हैं। पूजा के बाद लोगों को प्रसाद वितरण किया जाता है।विसर्जन के दिन, भक्त भगवान विश्वकर्मा की मूर्तियों का जुलूस बहुत उत्साह के साथ निकालते हैं। ये जुलूस संगीत और नृत्य के साथ एक जीवंत और आनंदमय वातावरण बनाते हैं। मूर्ति विसर्जन करनें के बाद भक्त भगवान विश्वकर्मा को प्रणाम करते हैं और साथ ही अपने लिए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
भगवान विश्वकर्मा को ‘देवताओं का शिल्‍पकार’, ‘वास्‍तुशास्‍त्र के देवता’ के नाम से भी जाना जाता है। वास्तुशास्त्र के जनक विश्वकर्मा एक अद्वितीय शिल्पी थे। ऐसी मान्यता है कि अपने ज्ञान और बुद्धि के बल पर उन्होंने त्रेतायुग में सोने की लंका, द्वापर में द्वारिका और कलयुग में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की विशाल मूर्तियों का निर्माण करने के साथ ही यमपुरी, वरुणपुरी, पांडवपुरी, कुबेरपुरी, शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी आदि का निर्माण किया। ऋगवेद में इनके महत्व का वर्णन 11 ऋचाएं लिखकर किया गया है।

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